
दुनिया में इनसान को सबसे ज्यादा प्यार यदि किसी आजादी से है तो वो है अभिव्यक्ति की आजादी, लेकिन इन दिनों दुनिया के तमाम मुल्कों में अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है. मजे की बात ये है कि अभिव्यक्ति की इस आजादी से जहाँ भी छेडछाड की कोशिश की जा रही है वहाँ लोग मरने मारने पर आमादा हैं. नेपाल की ताजा हिंसा इसका ज्वलंत उदाहरण है.
अभिव्यक्ति की आजा भारत में नागरिकों को संविधान प्रदत्त है. अनुच्छेद 14 और 21 में निहित है, लेकिन भारत में भी अभिव्यक्ति की आजादी महफूज नहीं है. पिछले दिनों सुप्रीमकोर्ट के सेवानिवृत जज जस्टिस अभय ओक ने भी ये बात बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में रेखांकित की थी. भारत में अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करने वालों को सरकार अर्बन नक्सली मानती है.
दुनिया में तकनीक के विकास ने अभिव्यक्ति की आजादी को मुखर औऔर बहुआयामी बनाया है लेकिन फासीवादी सरकारों को ये मुखरता पसंद नहीं है इसलिए जब, जहाँ, जिस सरकार को मौका मिलता है वहाँ इस आजादी को छीनने की या सीमित करने की कोशिश की जाती है.
अभिव्यक्ति की आजादी कुचलने के लिए तमाम बहाने बनाए जाते हैं. चीन में यदि अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने के लिए सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाई जाती है तो राष्ट्रीय सुरक्षा की आड ली जाती है. ईरानी सरकार विरोधी स्वर कुचलने के लिए पिछले 16साल से सोशल मीडिया पर रोक लगाए बैठी है. तुर्किए में भी आतंकवाद और सुरक्षा की आड में सोशल मीडिया पर रोक लगाई गई लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया.
दुनिया में बहुत कम ऐसे मुल्क हैं जहाँ अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान किया जाता है अन्यथा चाहे मिस्र हो या म्यांमार, पाकिस्तान हो या रूस या श्रीलंका सब अभिव्य्क्ति के दुश्मन क्न रहे हैं. भारत में तो चाहे आतंकवादी घटनाएं हों या किसान आंदोलन सबसे प ले इंटरनेट बंद किया जाता है. कोई सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर ही नहीं सकता. यहां अभिव्यक्ति की आजा सरकार का अनुग्रह है, अनुकम्पा है.एक्सिस नाउ के अनुसार, 2016 से 2023 के बीच भारत में कुल 771 इंटरनेट शटडाउन हुए—जो किसी भी अन्य देश से अधिक है.साल 2023 में ही 116 शटडाउन दर्ज किए,गए जो कि दुनिया में सबसे अधिक था।
एक जानकारी के अनुसार, 2024 में भारत में 84 शटडाउन हुए, जो फिर भी किसी भी लोकतांत्रिक देश में सबसे अधिक है। इनमें से 41 शटडाउन विरोध-प्रदर्शनों से जुड़े थे, 23 सांप्रदायिक हिंसा के कारण, और बाकी परीक्षा आदि अन्य सुरक्षा उपायों के लिए थे।
इस साल के आंकड़ों के अनुसार, 2025 की पहली छमाही में भारत में पांच शटडाउन दर्ज किए गए—ऐसे शटडाउन जो समान रूप से पूर्ण ब्लैकआउट और सोशल मीडिया/वॉयस ऐप्स को कैप करते हैं।
अभिव्यक्ति की आजादी कुचलने के लिए वर्ष 2016–2023 में 7712023 बार इंटरनेट बंद किया गया.इस प्रकार, विरोध या अन्य अस्थिरता के दौरान भारत में अक्सर इंटरनेट बंदी का उपयोग की गई है। इसका उद्देश्य गलत सूचना और अफवाहों को रोकना और कानून-व्यवस्था बनाए रखना होता है। लेकिन इसका लोकतांत्रिक अधिकारों, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना तक पहुँच पर गहरा असर पड़ता है।
मुश्किल ये है कि अब अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर जनचेतना इतनी बढ गई है कि कोई भी सरकार आसानी से इसे कुचल नहीं सकती. केवल बंदूक के दम पर कामयाबी हासिल नही हो सकती. चीन में तो थ्यान मान चौक पर इसी अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लडते 10 हजार युवक शहीद हो चुके हैं.जनता की आवाज दबाने का परिणाम श्रीलंका, बांग्लादेश में हम देख चुके हैं. नेपाल का उदाहरण हमारे सामने है. भारत में भी एस आई आर को लेकर जो असंतोष पनप रहा है वो किसी से छिपा नहीं है. इसलिए जरुरत इस बात की है कि सरकारें अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने के बजाय उसका सम्मान करना सीखें.
✍️राकेश अचल

