मुख्यमंत्री के आदेशों के ख़िलाफ़ जनसंपर्क विभाग में बगावत प्रदेशभर में कलमबंद हड़ताल से सरकारी सूचना तंत्र ठप

भोपाल मुख्यालय से जिलों तक कामकाज बंद कैडर संरचना कमजोर करने का आरोप तेज

✍️प्रेरणा गौतम

 

भोपाल। मध्यप्रदेश का जनसंपर्क विभाग आज अचानक एक बड़े प्रशासनिक भूचाल की चपेट में आ गया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के हालिया आदेशों के विरोध में विभाग के अधिकारी और कर्मचारी सामूहिक रूप से कलमबंद हड़ताल पर चले गए। परिणामस्वरूप पूरा सरकारी सूचना तंत्र प्रेस नोट, सरकारी विज्ञप्तियाँ, मीडिया समन्वय और दैनिक दफ्तरों का काम पूर्णरूप से ठप हो गया।

बिगड़े सुर “कैडर पर कब्ज़ा बर्दाश्त नहीं… विभाग को बाहरी अफसरों के हवाले किया जा रहा” जो बर्दाश्त नही किया जाएगा।

विभागीय कर्मचारियों के अनुसार सरकार की नई पदस्थापन नीति में जनसंपर्क विभाग के कैडर पदों पर तेज़ी से आईएएस और राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को बैठाया जा रहा है। कर्मचारियों का आरोप है कि यह कदम सुनियोजित तरीके से विभाग की कैडर आधारित संरचना को खत्म करने जैसा है।

कर्मचारियों ने साफ कहा
“जनसंपर्क विभाग की अपनी कैडर लाइन है। बाहरी अधिकारियों की नियुक्तियाँ हमारी भूमिका और भविष्य दोनों को खत्म कर देंगी।”

सबसे बड़ा विवाद डायरेक्टर पद के लिए विभाग से नियुक्ति न होने से पूरा विभाग आक्रोशित है।

आंदोलनकारी कर्मचारियों ने इस बार साफ़ चेतावनी दे दी है कि डायरेक्टर, जनसंपर्क का पद विभागीय कैडर का है, जिसे प्रशासनिक सेवा के किसी अधिकारी को देने का प्रयास किया गया तो आंदोलन और उग्र होगा।

उनकी सीधी बात
“इस बार इस महत्वपूर्ण पद पर किसी बाहरी अधिकारी की नियुक्ति स्वीकार नहीं होगी।”

प्रदेश में ‘सूचना ब्लैकआउट’ जैसा माहौल दफ्तर खाली, कामकाज पूर्ण ठप हुआ

हड़ताल का असर राजधानी से लेकर सभी जिलों में देखने को मिल सकता है।

न प्रेस रिलीज़ जारी होंगे?

न सरकारी योजनाओं की जानकारी बाहर आयेगी ?

न मीडिया तालमेल होगा?

मुख्यालय और जिला कार्यालयों के अधिकांश कक्ष खाली पड़े रहे।

कई जिलों में अधिकारी यह तक नहीं बता सके कि कामकाज कब बहाल होगा। विभागीय फाइलें, अनुमोदन और मीडिया से संपर्क प्रक्रियाएँ पूरी तरह रुक गईं।

यह विरोध केवल वर्तमान आदेशों तक सीमित नहीं है। कर्मचारियों का मानना है कि यदि यह क्रम जारी रहा तो जनसंपर्क विभाग आने वाले दिनों में पूरी तरह प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के सीधे नियंत्रण में चला जाएगा।इस स्थिति में विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों की प्रमोशन लाइन, अधिकार और निर्णय क्षमता लगभग समाप्त हो जाएगी।

 

सरकार की ओर से चुप्पी,तनाव और आशंकाएँ बढ़ेगी।

पूरा विभाग ठप हो जाने के बावजूद सरकार ने अभी तक किसी प्रकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। क्योंकि मामला सीधे मुख्यमंत्री के आदेशों से जुड़ा है, इसलिए प्रशासनिक हलकों में भी खामोशी और असमंजस है।

सूत्रों के मुताबिक यदि सरकार ने जल्द समाधान नहीं निकाला, तो आंदोलन को राज्यव्यापी विस्तार मिलने की पूरी संभावना है।

आख़िर सरकार का अगला कदम क्या होगा?

जनसंपर्क विभाग प्रदेश की सरकारी योजनाओं, उपलब्धियों और निर्णयों का सबसे बड़ा संचार माध्यम है। इस महकमे में उठी ऐसी बगावत सरकार के लिए गंभीर स्थिति पैदा कर रही है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि..

क्या सरकार अपनी नीति पर पुनर्विचार करेगी?

या टकराव और गहराएगा?

अभी माहौल तनावपूर्ण है और समाधान की राह धुंधली दिखाई दे रही है।

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