आदिवासी जीवन शैली प्रकृति संग सहजीवन की अनमोल धरोहर
प्रेरणा गौतम –
भारत की पहचान उसकी विविधता में है और इस विविधता का सबसे गहरा व जड़ से जुड़ा रूप हमारे आदिवासी समाज में दिखाई देता है। आदिवासी जीवन शैली सिर्फ संस्कृति या परंपरा नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर जीने की एक अद्भुत कला है।
प्रकृति से जुड़ा जीवन
आदिवासी समाज का जीवन जंगल, पहाड़, नदियों और मिट्टी से गहराई से जुड़ा होता है। उनका मानना है कि धरती माँ है, पेड़ उनके संरक्षक हैं और नदी जीवनदायिनी। यही कारण है कि वे जंगल से केवल उतना ही लेते हैं, जितना ज़रूरत हो और बदले में उसका संरक्षण भी करते हैं।

कला, संगीत और नृत्य की पहचान
आदिवासी संस्कृति का मूल हिस्सा है उनका संगीत और नृत्य। ढोल की थाप और लोकगीत उनके जीवन के हर सुख-दुख में शामिल होते हैं। चाहे फसल कटाई का उत्सव हो, विवाह हो या कोई धार्मिक अनुष्ठान, उनकी कला जीवन को रंगीन और ऊर्जा से भर देती है।

परिधान और आभूषण
आदिवासी समाज के लोग प्राकृतिक रंगों, हाथ से बुने कपड़ों और हस्तनिर्मित आभूषणों को महत्व देते हैं। मोतियों, धातुओं, सीप और लकड़ी से बने आभूषण उनके पहनावे की विशेषता हैं। ये सिर्फ सजावट का साधन नहीं, बल्कि पहचान और गर्व का प्रतीक भी हैं।

सामाजिक ताना-बाना
आदिवासी समाज सामूहिकता पर आधारित होता है। वहां फैसले पंचायत या समूह द्वारा लिए जाते हैं। सहयोग, साझेदारी और समानता उनके जीवन की नींव है। उनमें किसी के साथ भेदभाव की गुंजाइश बहुत कम होती है।
रीति-रिवाज और विश्वास
आदिवासी रीति-रिवाज प्रकृति पूजा पर केंद्रित होते हैं। पेड़-पौधे, पर्वत, जलस्रोत और अग्नि उनके देवता माने जाते हैं। यह आस्था न केवल धार्मिक भावना है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की एक गहरी सीख भी देती है।

चुनौतियाँ और बदलाव

आज के समय में आधुनिकता की आंधी और शहरीकरण की दौड़ ने आदिवासी जीवन शैली को प्रभावित किया है। उनके जंगल सिकुड़ रहे हैं, परंपराएँ टूट रही हैं और उनकी जीवनशैली खतरे में है। बावजूद इसके, आदिवासी समाज अपनी अस्मिता और संस्कृति को बचाए रखने का निरंतर प्रयास कर रहा है।

