राजेन्द्र सिंह जादौन
व्यंग
“राजनीति के समंदर में जो नहीं तैरा, वो डूबा। और जो तैरा, वो किसी का शिकार बना।”

समुद्र जितना गहरा होता है, राजनीति उससे कहीं ज़्यादा गहरी और खतरनाक। यहाँ लहरों के ऊपर मुस्कानें तैरती हैं, लेकिन नीचे मगरमच्छ छिपे रहते हैं। और ये मगरमच्छ सिर्फ मछलियां नहीं खाते, पूरे झुंड को निगल जाते हैं।
भोपाल का शारिक केस इसी मगरमच्छ-मछली के खेल की कहानी है। एमडी ड्रग्स कांड का नाम सुनते ही सबके दिमाग में सवाल गूंजता है आखिर इतने सालों तक यह ड्रग माफिया फलता-फूलता कैसे रहा? ये सवाल सिर्फ शारिक मछली पर नहीं, बल्कि उस पूरे सिस्टम पर है जो मगरमच्छ बनकर सत्ता की गहराई में तैर रहा है।
राजनीति के बड़े मगरमच्छ हमेशा पिराना जैसी छोटी लेकिन खतरनाक मछलियों को पालते हैं। क्यों? क्योंकि पिराना मछली के दांत तेज होते हैं, खून की भूख होती है और किसी भी काम को अंजाम देने की हिम्मत होती है। यह पिराना छोटे-छोटे काम से शुरुआत करता है अवैध शराब, जमीनों का कब्जा, रियल एस्टेट का खेल, और फिर आते हैं ड्रग्स।
इन पिरानाओं मछली को मगरमच्छ पालता है क्योंकि उन्हें ऐसे पालतू चाहिए जो गंदा काम कर सकें। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब यह पिराना ताकतवर हो जाता है, अपने इलाके का राजा बनने लगता है। तब मगरमच्छ को डर लगता है कि कहीं यह पिराना एक दिन उसे ही ना काट खाए। और फिर वही मगरमच्छ, जिसने इसे पाला था, उसे निगल जाता है। यही सत्ता का सबसे पुराना खेल है पालो, इस्तेमाल करो, और खत्म कर दो।
अब आते हैं भोपाल पर मछली की अवैध संपत्तियों पर बुलडोज़र चला। तस्वीरें वायरल हुईं। टीवी चैनल्स पर ब्रेकिंग न्यूज चली “काला साम्राज्य ध्वस्त।” लोग ताली बजा रहे हैं। लेकिन क्या सच में सब खत्म हो गया?
सवाल यह है इतने सालों से यह अवैध निर्माण कैसे खड़ा हुआ?
क्या इन इमारतों के नक्शे बिना अनुमति बने?
क्या नगर निगम, पुलिस, राजस्व विभाग, ड्रग कंट्रोल, सब अंधे थे?
क्या इस पूरे समय कोई भी अधिकारी सोया था या फिर सबकी आंखों पर नोटों की पट्टी बंधी थी?
यह काला साम्राज्य रातों-रात नहीं खड़ा हुआ। यह सालों से फलता-फूलता रहा। और जब ड्रग्स का खेल खुला, तब बुलडोज़र चलाकर दिखाया गया कि सिस्टम कितना सख्त है। लेकिन असल में यह “एक मगरमच्छ द्वारा अपनी ही पाली हुई मछली को निगलने का दृश्य” है।
मछली दोषी है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन उससे बड़ा दोषी है वह सिस्टम जिसने उसे ताकतवर बनाया।
वह नेता जिसने उसे संरक्षण दिया।
वह अधिकारी जिसने फाइलों पर मुहर लगाई।
वह पुलिस जिसने आंखें मूंद लीं।
अगर सिस्टम ईमानदार होता, तो शारिक मछली पिराना से मगरमच्छ नहीं बनता। वह वहीं खत्म हो जाता जहां से उसने शुरुआत की थी। लेकिन नहीं सत्ता को ऐसे किरदार चाहिए। क्योंकि सत्ता के खेल में गंदगी के लिए गंदे खिलाड़ी जरूरी होते हैं।
प्रशासन, पुलिस और सरकार अब बुलडोज़र दिखाकर कह रही है “हमने सख्ती की।” लेकिन यह सवाल उठना लाज़मी है क्या ये अब तक सो रहे थे? या फिर मिलीभगत में थे?
क्योंकि जब कोई काला साम्राज्य बनता है, तो सिर्फ एक मछली से नहीं बनता।
यह फाइलों से बनता है।
यह नेताओं की सिफारिशों से बनता है। यह पुलिस के संरक्षण से बनता है। और जब खेल खुलता है, तो मगरमच्छ साफ बच निकलता है। मछली ही पकड़ में आता है।
इस पूरे खेल का निचोड़ यही है राजनीति का समंदर हमेशा गहरा रहेगा। मगरमच्छ हमेशा मौजूद रहेंगे। और पिराना जैसी मछलियां हमेशा चारे के लिए पाली जाएंगी। फर्क सिर्फ इतना है कि जब पिराना मछली बड़ा हो जाता है, तो मगरमच्छ उसे निगल लेता है।
भोपाल का शारिक मछली केस सिर्फ एक चेहरा है। कल को कोई और चेहरा होगा। बुलडोज़र चलेगा। कैमरे आएंगे। और जनता ताली बजाएगी। लेकिन मगरमच्छ कभी कैमरे में नहीं आएंगे। क्योंकि वे इतने गहरे हैं कि कैमरे की रोशनी वहां तक पहुंच ही नहीं पाती।
क्या बुलडोज़र चलने से ड्रग्स का खेल खत्म हो जाएगा?
क्या अवैध साम्राज्य का जन्म रुक जाएगा? या फिर कल को कोई और शारिक पैदा होगा, क्योंकि मगरमच्छों को हमेशा नई मछलियों की जरूरत होती है?

सच्चाई यही है यह बुलडोज़र सिर्फ जमीन पर नहीं, जनता की याददाश्त पर भी चलता है। ताकि मगरमच्छ हमेशा छिपे रहें।

