राजनीति में शोर नहीं, संवाद ही असली शक्ति है।

आशीष उषा अग्रवाल को फिर मिली प्रदेश मीडिया की कमान संवाद की परंपरा का पुनर्जन्म

✍️राजेन्द्र सिंह जादौन

 

 

राजनीति के गलियारों में कुछ चेहरे वक्त के साथ गुम हो जाते हैं, और कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो वक्त के खिलाफ अपनी पहचान गढ़ते हैं। आशीष उषा अग्रवाल उन्हीं में से एक हैं। उन्होंने कभी भी अपनी मौजूदगी का शोर नहीं मचाया, लेकिन उनकी सादगी और संवाद की गूंज पूरे संगठन में सुनाई देती रही। भाजपा में लंबे अंतराल के बाद किसी मीडिया प्रभारी को दूसरी बार प्रदेश की कमान सौंपी गई है, और यह जिम्मेदारी दोबारा आशीष अग्रवाल को मिलना सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि उस विश्वास की पुनर्स्थापना है जो संगठन किसी व्यक्ति में तब करता है जब उसका काम बोलता है, न कि वह खुद।

आशीष अग्रवाल का मीडिया मैनेजमेंट राजनीति की उस परिभाषा से अलग है जहाँ प्रचार, बयानबाज़ी और छवि-निर्माण ही सब कुछ बन चुका है। वे मीडिया को ‘प्रबंधन’ नहीं, बल्कि ‘संवाद’ मानते हैं। उनके लिए पत्रकार सिर्फ खबर लिखने वाले लोग नहीं, बल्कि एक बड़े परिवार के सदस्य हैं। उनका यह व्यवहार ही उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाता है। उनके बीच बैठना आदेश या औपचारिकता नहीं, बल्कि आत्मीयता का अनुभव कराता है। वे पत्रकारों को ‘भाई’, ‘बंधु’ और ‘आदरणीय’ कहकर पुकारते हैं, और ये शब्द केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि उनके व्यवहार का हिस्सा हैं।

आज जब राजनीति में संवाद की जगह निर्देशों ने ले ली है, और सच्चाई के सवाल असहजता पैदा करते हैं, तब आशीष अग्रवाल जैसे लोग उस माहौल में एक ताज़ा हवा की तरह हैं। वे सुनते भी हैं, समझते भी हैं और उत्तर भी देते हैं। यही कारण है कि पत्रकारों का विश्वास उनके साथ हमेशा बना रहता है। उनके भीतर वह दुर्लभ गुण है जो सत्ता और मीडिया के बीच बने अविश्वास की दीवार को तोड़ता है। वे जानते हैं कि संवाद का अर्थ सहमति नहीं, बल्कि समझदारी है। पत्रकारों की समस्याओं, उनके अधिकारों और उनके मान-सम्मान के मुद्दों पर वे न सिर्फ संवेदनशील हैं, बल्कि कई बार सरकार के सामने खुलकर अपनी बात रखते हैं।

राजनीति के मंचों पर यह विरला गुण है कि कोई व्यक्ति सत्ता के दबाव में भी अपनी बात डंके की चोट पर रख सके। आशीष अग्रवाल इस गुण के प्रतीक हैं। उनके भीतर न तो अहंकार की ऊँचाई है, न पद का प्रदर्शन। उनका व्यवहार बताता है कि सादगी में भी ताकत होती है। वे अपने काम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, और यही कारण है कि संगठन ने उन पर दोबारा भरोसा जताया। यह भरोसा सिर्फ उनके ऊपर नहीं, बल्कि उस सोच के ऊपर है जो मानती है कि संवाद किसी भी व्यवस्था की आत्मा है।

मीडिया से जुड़ा हर व्यक्ति जानता है कि आशीष अग्रवाल से बात करना किसी औपचारिक मीटिंग जैसा नहीं, बल्कि एक सहज मुलाकात जैसा होता है। वे हर पत्रकार को नाम से जानते हैं, उसकी भाषा में बात करते हैं और उसकी परिस्थिति को समझते हैं। यह सहजता ही उन्हें विशेष बनाती है। उनके नेतृत्व में पार्टी का मीडिया विभाग हमेशा संवाद, अनुशासन और पारदर्शिता का प्रतीक रहा है। वे किसी मुद्दे पर टिप्पणी करने से पहले तथ्यों को परखते हैं, और फिर बेहद सटीक शब्दों में अपनी बात रखते हैं। यही कारण है कि उनकी बात को मीडिया गंभीरता से सुनता है और सम्मान देता है।

राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि पद का असली मतलब तब समझ आता है जब आप उसे दोबारा पाते हैं। आशीष अग्रवाल का दोबारा मीडिया प्रभारी बनना इसी कहावत की मिसाल है। यह उस परंपरा की वापसी है जिसमें व्यक्ति का चयन उसके प्रचार के आधार पर नहीं, बल्कि उसके चरित्र और कार्यशैली के आधार पर होता है। आज के समय में जब अधिकतर नेता मीडिया से संवाद की बजाय नियंत्रण की कोशिश करते हैं, तब आशीष अग्रवाल जैसे नेता संवाद को ही शक्ति मानते हैं। वे जानते हैं कि शब्द केवल बयान नहीं होते, विश्वास भी होते हैं, और यही विश्वास किसी भी रिश्ते की नींव है।

प्रदेश अध्यक्ष का यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि संगठन अब भी उन मूल्यों को जीवित रखे हुए है जिनसे भाजपा की पहचान बनी थी संवाद, सादगी और सेवा। आशीष अग्रवाल का व्यक्तित्व इन्हीं तीनों मूल्यों का संगम है। वे सत्ता की भाषा नहीं बोलते, वे समाज की आवाज़ सुनते हैं। उनके भीतर एक कर्मशील कार्यकर्ता की विनम्रता और एक कुशल प्रबंधक की दूरदृष्टि दोनों मौजूद हैं।

आज जब हर तरफ शोर और प्रचार की प्रतिस्पर्धा है, तब आशीष अग्रवाल का शांत और संयमित आचरण राजनीति को एक नई दिशा देता है। वे यह साबित करते हैं कि मीडिया का सम्मान केवल तब संभव है जब नेता उसे बराबरी से देखें, न कि अपने प्रचार का औजार बनाएं। शायद यही कारण है कि पत्रकारों से लेकर कार्यकर्ताओं तक, सभी के बीच उनके प्रति एक स्वाभाविक सम्मान की भावना है।

यह पुनर्नियुक्ति केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि संवाद की उस परंपरा का पुनर्जन्म है जो धीरे-धीरे राजनीति से गायब होती जा रही थी। यह एक संकेत है कि अगर इरादा साफ हो, भाषा संयमित हो और व्यवहार पारदर्शी हो तो सत्ता भी सेवा का माध्यम बन सकती है। आशीष अग्रवाल ने यह साबित किया है कि राजनीति में विनम्रता कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है।

उनकी मुस्कान, उनका सधा हुआ व्यवहार और उनकी स्पष्ट सोच बताती है कि सच्चे नेता वो नहीं जो हर मंच पर बोलें, बल्कि वो हैं जो हर दिल में जगह बना लें। आशीष अग्रवाल ने संवाद से जगह बनाई है, और संवाद ही उनकी सबसे बड़ी पूँजी है। यही कारण है कि आज जब उन्हें दोबारा प्रदेश मीडिया की कमान सौंपी गई है, तो यह सिर्फ एक नियुक्ति नहीं बल्कि उस सोच की जीत है जो मानती है कि राजनीति में शोर नहीं, संवाद ही असली शक्ति है।

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