“कफ सिरप” बना मौत का घूंट छिंदवाड़ा के मासूम निगले गए जहरीली दवा से, स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठे सवाल?
रिपोर्ट: प्रेरणा गौतम
छिंदवाड़ा जिले के छोटे-छोटे गांवों में इन दिनों माताओं की चीखें गूंज रही हैं।
किसी की गोद सूनी हो गई, किसी की आंखों का उजाला चला गया।
जिन्हें सर्दी-खांसी में राहत के लिए सिरप दिया गया था, वही सिरप अब मौत की वजह बन गया।
सिर्फ तीन दिनों के भीतर जिले के अलग-अलग हिस्सों से 11 मासूम बच्चों की मौत की पुष्टि हुई है।
सभी ने एक ही दवा Coldrif Cough Syrup का सेवन किया था। यह सिरप स्थानीय मेडिकल स्टोर्स में खुलेआम बिक रहा था और डॉक्टरों द्वारा बच्चों को लिखा जा रहा था।

शुरुआती जांच में सामने आया है कि सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) नामक ज़हरीला रसायन मिला था
जो शरीर में पहुंचते ही किडनी को बर्बाद कर देता है और धीरे-धीरे अंदर से ज़हर की तरह फैल जाता है।
पहला केस जब एक मां ने देखा अपने बच्चे की सांसें रुकती हुईं
खैरी गांव की 2 वर्षीय रिया को हल्की खांसी थी।
मां ने डॉक्टर से दिखाया, डॉक्टर ने Coldrif सिरप लिखा।
रिया ने जैसे ही दो खुराक लीं, उसकी तबीयत बिगड़ने लगी उल्टियां, पेट दर्द, और फिर सांस रुकना। मां अस्पताल लेकर भागी, लेकिन डॉक्टरों ने कहा “हम कुछ नहीं कर सकते।”
रिया अब नहीं रही।
उसके बाद जैसे मातम का सिलसिला शुरू हो गया।
जांच का खुलासा सिरप में मिला ज़हर
छिंदवाड़ा ड्रग इंस्पेक्टर अमित तिवारी की टीम ने जब सिरप की सैंपलिंग की, तो भोपाल की स्टेट लैब में भेजा गया नमूना चौंकाने वाला निकला। रिपोर्ट में DEG और एथिलीन ग्लाइकोल जैसे घातक रसायनों की पुष्टि हुई।
इन रसायनों का इस्तेमाल सामान्यतः ब्रेक फ्लूइड और इंडस्ट्रियल केमिकल्स में होता है, न कि दवाओं में। स्वास्थ्य विभाग ने तत्काल आदेश जारी करते हुए Coldrif सिरप की बिक्री व वितरण पर रोक लगा दी।
निर्माता कंपनी पर शिकंजा लाइसेंस निलंबित, जांच टीम गठित
सिरप का निर्माण Sresan Pharmaceuticals Pvt. Ltd. द्वारा किया गया था,
जिसका मुख्यालय इंदौर में और निर्माण इकाई पिथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है।

जांच टीम ने पाया कि कंपनी ने उत्पादन के दौरान गुणवत्ता परीक्षण के मानक नहीं अपनाए।
लैब रिपोर्ट्स फर्जी दिखाई गईं, और बैच रिलीज बिना अधिकृत फार्मासिस्ट की अनुमति के की गई।
राज्य सरकार ने कंपनी का लाइसेंस निलंबित कर दिया है और FIR दर्ज की गई है।
सीईओ और गुणवत्ता प्रबंधक फरार बताए जा रहे हैं।
डॉक्टर की गिरफ्तारी लापरवाही से गई 11 जानें
जिला पुलिस ने बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने कई बच्चों को यही सिरप लिखा था, जबकि यह पहले ही संदिग्ध दवा के रूप में दर्ज की जा चुकी थी।
पुलिस ने डॉक्टर के क्लिनिक से 47 बोतलें जब्त की हैं।
साथ ही 433 बोतलें जिलेभर से सील की गई हैं। लगभग 222 बोतलें बिक चुकी हैं, जिनकी ट्रेसिंग अब भी जारी है।
सरकार की कार्रवाई मंत्री बोले, “कड़ी सजा होगी”
स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने कहा
> “हम किसी भी दोषी को बख्शेंगे नहीं। बच्चों की मौत एक प्रशासनिक असफलता नहीं, बल्कि मानवीय त्रासदी है। इस पर सरकार ज़ीरो टॉलरेंस नीति अपनाएगी।”
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने घटना पर गहरा शोक जताते हुए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने के आदेश दिए हैं।
SIT में ड्रग कंट्रोलर, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और न्यायिक अधिकारी शामिल होंगे।
केंद्र भी हरकत में सभी राज्यों को सतर्क रहने के निर्देश
दिल्ली में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तुरंत बैठक बुलाई और सभी राज्यों को आदेश दिया
> “बच्चों के लिए तैयार की जाने वाली औषधियों की सैंपल टेस्टिंग अनिवार्य रूप से की जाए।”
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने राज्य सरकार से 72 घंटे में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
गलियों में मातम ‘दवा दी, जान ले ली’
छिंदवाड़ा के मोहल्लों में मातम पसरा हुआ है। कई घरों में दीये बुझ चुके हैं। हर गली से एक ही सवाल उठ रहा है “अगर दवा भी जान ले ले तो फिर हम क्या करें?”
तीन दिन पहले जिन बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी,
आज वहां सन्नाटा है।
लोग दवा दुकानों को शक की निगाह से देख रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय यह सिस्टम की बीमार आत्मा है
भोपाल एम्स के फार्माकोलॉजिस्ट डॉ. मनीष द्विवेदी कहते हैं
> “भारत में हर साल 10% से ज्यादा बच्चों की मौत नकली या घटिया दवाओं से होती है।
DEG और एथिलीन ग्लाइकोल जैसे रसायन दवा में नहीं होने चाहिए, लेकिन कई बार सस्ता उत्पादन करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है।”
उन्होंने कहा कि देश में फार्मा कंपनियों की क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम बेहद कमजोर है। कई बार लाइसेंस नवीनीकरण सिर्फ फाइलों में होता है,
वास्तविक निरीक्षण कभी नहीं।
सवाल जो सरकार से पूछे जा रहे हैं
1. जब Coldrif सिरप पहले भी कई राज्यों में प्रतिबंधित था, तो यह छिंदवाड़ा में कैसे पहुंचा?
2. दवा परीक्षण की प्रक्रिया इतनी ढीली क्यों है कि मौतें होने के बाद ही कार्रवाई होती है?
3. क्या स्वास्थ्य विभाग ने कभी जिले की मेडिकल दुकानों का सैंपल टेस्ट किया?
4. कंपनी को लाइसेंस किसने और कैसे दिया?
5. क्या यह महज एक गलती है या मुनाफे के लिए जानलेवा साजिश?
इतिहास गवाह यह पहला मामला नहीं है
भारत में इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं
2022 में गैम्बिया में भारत निर्मित सिरप से 66 बच्चों की मौत हुई थी।
2023 में उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चे एक कफ सिरप से मारे गए।
2024 में तमिलनाडु में 5 बच्चों की जान गई थी।
हर बार जांच के बाद बयान आए, आदेश जारी हुए, लेकिन फिर वही लापरवाही लौट आई।
माताओं का रोना “मेरा बच्चा दवा से मरा, बीमारी से नहीं”
छिंदवाड़ा की सुनीता देवी रोते हुए कहती हैं
> “डॉक्टर ने दवा दी थी, मैंने भरोसा किया।
पर अब लगता है, मौत की बोतल घर लाई थी।”
उनके जैसे सैकड़ों परिवार हैं जो अब इंसाफ मांग रहे हैं।
कहते हैं, “अगर डॉक्टर, कंपनी और अफसर तीनों सो जाएं,
तो जागती है सिर्फ श्मशान की आग।”
अफसरशाही की सुस्ती पहले मौतें, फिर जांच
दवा का सैंपल 28 सितंबर को भेजा गया था, लेकिन रिपोर्ट 3 अक्टूबर को आई तब तक 11 बच्चे मर चुके थे।
अगर जांच तेज होती, तो शायद कुछ जानें बच जातीं।
यह देरी सिर्फ फाइलों में नहीं, ज़मीर में भी दिखती है।
सिस्टम का बीमार सच जब निगरानी सिर्फ कागज़ों में रह गई
प्रदेश में कुल 52 जिलों के लिए सिर्फ 21 ड्रग इंस्पेक्टर हैं।
हर इंस्पेक्टर को औसतन 3000 दुकानों की निगरानी करनी होती है।
ऐसे में किसी संदिग्ध दवा की पहचान समय रहते हो पाना लगभग असंभव है।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी न कोई दौरा, न बयान
आश्चर्यजनक रूप से जिले के किसी भी प्रमुख जनप्रतिनिधि ने अब तक पीड़ित परिवारों से मुलाकात नहीं की।
सिर्फ सरकारी प्रेस नोट जारी हुए, संवेदनाएं दी गईं, लेकिन ज़मीन पर सन्नाटा है।
क्या सुधार संभव है? विशेषज्ञों के सुझाव
हर दवा की बारकोड ट्रेसिंग व्यवस्था हो
उत्पादन इकाइयों का त्रैमासिक ऑडिट अनिवार्य हो
बच्चों की दवाओं के लिए अलग गुणवत्ता मानक बने
दोषी कंपनियों को काला सूचीबद्ध (Blacklist) किया जाए
दवा से मौत पर कानूनी सजा मृत्युदंड तक हो
सवाल जो अब भी बाकी है
“क्या हमारा सिस्टम इतना खोखला हो चुका है
कि दवा और ज़हर में फर्क सिर्फ किस्मत से तय होगा?”
छिंदवाड़ा के मासूम अब नहीं लौटेंगे, लेकिन उनकी मौत एक चेतावनी है कि अगर व्यवस्था ने खुद को नहीं बदला, तो अगला नंबर किसी और घर का होगा।
यह हादसा सिर्फ 11 मासूमों की मौत नहीं,
यह उस भरोसे की भी हत्या है, जो जनता दवा, डॉक्टर और सरकार पर करती है।
कानून तब तक जिंदा नहीं कहलाता जब तक इंसाफ सांस न ले।

