एक लिखी हुई बात है — ताहिर
लेख – राजेन्द्र सिंह जादौन
कभी-कभी कुछ लोग किसी किताब के किरदार नहीं होते, बल्कि खुद किताब बन जाते हैं। उनके जीवन के हर पन्ने पर कोई नई सीख, कोई नई रौशनी दर्ज होती है। भोपाल के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी ताहिर अली ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जिनकी ज़िंदगी शब्दों से नहीं, कर्मों से लिखी गई है। 3 अक्टूबर को जब वे अपने जीवन के 71 वर्ष पूर्ण कर रहे हैं, तब उनके परिचित, उनके सहकर्मी और उन्हें जानने वाला हर व्यक्ति यही कहता है ताहिर साहब एक लिखी हुई बात हैं, जो आने वाले समय में भी बार-बार पढ़ी जाएगी।”

ताहिर अली की पहचान किसी पद या उपाधि से नहीं, बल्कि उनके सादे और सच्चे जीवन से बनी। जनसंपर्क विभाग में रहते हुए उन्होंने कभी प्रचार नहीं किया, केवल संवाद किया। उन्होंने सरकार और जनता के बीच की उस अदृश्य दूरी को अपने व्यवहार, संवेदनशीलता और ईमानदार काम से पाटने की कोशिश की। उनके लिए जनसंपर्क केवल सरकारी विभाग नहीं था, बल्कि इंसानों को जोड़ने का एक माध्यम था। यही वजह है कि जिनसे भी उनका संपर्क हुआ, वह केवल एक अधिकारी से नहीं, बल्कि एक स्नेही, समझदार और नेकदिल इंसान से हुआ।
ताहिर साहब का स्वभाव हमेशा से संयमित और विचारशील रहा है। वे मानते हैं कि शब्दों से ज्यादा असर मौन कर्मों का होता है। शायद इसलिए वे कभी अपने कार्यों का श्रेय नहीं लेते, बल्कि दूसरों की सफलता को अपनी खुशी मानते हैं। विभाग के भीतर उन्हें हमेशा एक मार्गदर्शक के रूप में देखा गया। नए अधिकारी, युवा पत्रकार या संवादकर्मी सभी उन्हें न केवल एक वरिष्ठ बल्कि एक सलाहकार के रूप में मानते हैं। उनकी विनम्रता, गंभीरता और समझदारी ने उन्हें सबका “ताहिर भाई” बना दिया।
भोपाल की मिट्टी से जुड़े हुए ताहिर अली ने अपने पूरे जीवन में शहर की संस्कृति, साहित्य और संवेदना को जिया है। वे उन लोगों में से हैं जो हर जगह अपने विचारों से एक नई चेतना भर देते हैं। शहर के कई साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजनों में उनकी उपस्थिति एक प्रेरणा मानी जाती रही है। वे हमेशा कहते हैं कि किसी व्यक्ति की असली पहचान उसके पद या प्रतिष्ठा में नहीं, बल्कि उस असर में होती है जो वह दूसरों के दिलों में छोड़ जाता है।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सादगी में भी असली गरिमा होती है। उन्होंने कभी भव्यता की चाह नहीं रखी, बल्कि सच्चाई और कर्तव्य को ही अपना अलंकार बनाया। वे जो कुछ कहते हैं, वही जीते हैं यही कारण है कि लोग उन्हें एक “लिखी हुई बात” कहते हैं। क्योंकि उनका हर शब्द, हर कदम, हर कर्म एक सिखावन छोड़ जाता है।
जनसंपर्क की नौकरी में जहां अधिकांश लोग दिखावे के शोर में खो जाते हैं, वहाँ ताहिर अली ने चुपचाप अपने काम से पहचान बनाई। उन्होंने कभी माइक या मंच की जरूरत नहीं समझी, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को अपना माध्यम बनाया। उनके लिए हर खबर, हर रिपोर्ट, हर प्रेस विज्ञप्ति के पीछे कोई चेहरा, कोई कहानी, कोई सच्चाई होती थी जिसे वे महसूस करते थे। यही कारण है कि उनके बनाए हुए संबंध कभी औपचारिक नहीं रहे, बल्कि आत्मीय रहे।
सेवानिवृत्ति के बाद भी ताहिर साहब आज भी सक्रिय हैं विचारों में, संबंधों में और संवादों में। वे अब भी शहर के युवा पत्रकारों और समाजसेवियों के लिए मार्गदर्शक हैं। वे बताते हैं कि जनसंपर्क केवल सूचना का प्रवाह नहीं है, यह भरोसे और रिश्तों की डोर है। उनकी बातें किसी किताब की तरह लगती हैं हर वाक्य में अनुभव, हर उदाहरण में जीवन का सार।
ताहिर अली का नाम लेने मात्र से जो पहला शब्द मन में आता है, वह है “ईमानदारी”। अपने जीवन में उन्होंने कभी किसी समझौते को जगह नहीं दी। जो सही था, उसे सही कहा चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो। यही कारण है कि वे अपने साथियों और अधिकारियों के बीच हमेशा सम्मान के पात्र रहे। वे उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जो काम को पूजा और सच को धर्म मानती है।
71 वर्ष की उम्र में भी उनकी ऊर्जा और उत्साह युवाओं को प्रेरित करता है। वे अब भी कहते हैं “ज़िंदगी तब तक अधूरी है, जब तक हम दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं।” यह विचार ही उन्हें एक अलग पहचान देता है। वे सिर्फ एक अधिकारी नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं जो सिखाती है कि सेवा का अर्थ केवल आदेशों का पालन नहीं, बल्कि संवेदना का विस्तार है।
ताहिर अली का जीवन यह बताता है कि अच्छा इंसान होना किसी पुरस्कार या पद की देन नहीं है। यह एक साधना है, जो रोज़मर्रा की सच्चाई से उपजती है। उनके जैसे लोग कम मिलते हैं, जो अपने पद से नहीं, अपने चरित्र से लोगों के दिलों में जगह बनाते हैं। वे अपने पीछे एक ऐसा उदाहरण छोड़ रहे हैं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा।
आज जब वे अपने जीवन के 71 वर्ष पूरे कर रहे हैं, तब यह कहना गलत नहीं होगा कि ताहिर अली सिर्फ एक व्यक्ति नहीं एक इतिहास हैं। एक ऐसा इतिहास जो किताबों में नहीं, दिलों में लिखा गया है। वे सचमुच एक लिखी हुई बात हैं, जो वक्त के साथ फीकी नहीं पड़ेगी, बल्कि हर नए दिन के साथ और गहरी, और चमकदार होती जाएगी।

