लद्दाख का आक्रोश, भूख हड़ताल से हिंसा तक, सरकार को किसका इंतजार?

लद्दाख की जनता बर्फ़ में जमी या सरकार का शेड्यूल लेह का खनिज?

✍️प्रेरणा गौतम

लद्दाख की सर्द ज़मीन पर आजकल राजनीति का पारा तेज़ है। एक ओर जनता भूख हड़ताल और प्रदर्शनों के ज़रिए आवाज़ उठा रही है राज्य का दर्जा दो, 6th शेड्यूल दो, स्थानीय नौकरियों में आरक्षण दो। दूसरी ओर सरकार है, जो हर मांग पर मुस्कराकर कह देती है “देखेंगे, कमेटी बनाएँगे, रिपोर्ट आएगी।” मानो जनता का भविष्य किसी सरकारी फाइल की तरह धूल में पड़ा हो, जिस पर हर बार सिर्फ़ “ लंबित” की मुहर लगती है।

या कहें  असली खेल कुछ और ही है। सरकार जनता की आवाज़ से ज़्यादा लद्दाख की ज़मीन के नीचे दबे खज़ाने पर नज़र गड़ाए बैठी है लिथियम। वही लिथियम जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों और मोबाइल बैटरियों का “दिल” है। यानी जनता के लिए लोकतंत्र “लो बैटरी” मोड में है, और खदानों के लिए “फुल चार्ज।”

सरकार जनता को अधिकार देने के मामले में तो सुरक्षा, पर्यावरण और संवेदनशील सीमा का हवाला देती है। लेकिन जब खनन की बात आती है, तो यही खतरे अचानक “प्रबंधनीय मुद्दे” बन जाते हैं। जनता बोल रही है “हमारे हक़ दो,” तो सरकार का जवाब है “संविधान बड़ा जटिल है।” कॉर्पोरेट कहे “खनन दो,” तो जवाब है “देश को आत्मनिर्भर बनाना है।”

 

सूत्रों की मानें तो लद्दाख में लिथियम की खोज 2022-23 से चल रही है। मेराक ब्लॉक और आसपास के इलाक़ों में सर्वे हुआ, रिपोर्ट में रिज़र्व छोटा और गुणवत्ता औसत बताया गया। क्या सरकार की चमकती आँखें यह कह रही हैं कि “बैटरी क्रांति” यहीं से शुरू होनी चाहिए? जनता अपना हक मांग रही है “हमें 6th शेड्यूल चाहिए,” तो सरकार हंसकर रहे  रही है, “वो तो लिथियम का शेड्यूल है, जनता का नहीं ,जनता को तो जीएसटी महोत्सव दे दिया।”

युवाओं का ग़ुस्सा यह देखकर और भड़क रहा है। वे सोचते हैं कि हमारी ज़मीन पर खनन होगा, संसाधन बाहर भेजे जाएँगे, मुनाफ़ा कॉर्पोरेट जेब में जाएगा और हमें मिलेगा सिर्फ़ बेरोज़गारी और प्रदूषण। क्या यही लोकतंत्र है? क्या यही नया भारत है?

दिल्ली की राजनीति का गणित भी अजीब है। जनता के आँकड़े तो सिर्फ “कुछ हज़ार प्रदर्शनकारी।”है लेकिन खनिज के आँकड़े काफी बड़े दिख रहे हैं  “हज़ारों टन लिथियम।” सत्ता के लिए जनता महज़ हेडलाइन है, और खनिज असली डेडलाइन।

अब सवाल उठता है क्या सरकार को जनता का इंतज़ार था या कॉर्पोरेट का? कहीं ऐसा तो नहीं कि दाल में थोड़ा नहीं, बल्कि पूरा कडाणी मसाला मिला हुआ है? बाकी तो जय श्रीराम 🙏

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