नाकामयाबी वो डिग्री है जो सिर्फ़ अनुभव की स्याही से मिलती है
✍️ प्रेरणा गौतम
नाकामयाबी का गुरुकुल

ज़िंदगी नाम की इस पाठशाला में हर कोई “फेल” होता है, और यही उसकी असली “पासिंग मार्कशीट” होती है। बड़ा मज़ेदार है, हम स्कूल-कॉलेज में किताबों से शिक्षा लेते हैं, गुरुजन हमें ज्ञान देते हैं, और माता-पिता रास्ता दिखाते हैं। लेकिन जब असल ज़िंदगी की सड़क पर पाँव रखते हैं तो पहली ही ठोकर बता देती है “बेटा, ये असली क्लासरूम है।”
नाकामयाबी से बड़ा कोई शिक्षक नहीं। ये वो बेरहम टीचर है जो न कॉपी जांचता है, न ट्यूशन देता है, सीधा थप्पड़ मारकर समझाता है। और हाँ, ये वो गुरु है जो पहले इम्तिहान लेता है, बाद में पाठ पढ़ाता है।
आजकल लोग बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ लेकर घूमते हैं, रिज़्यूमे पर स्किल्स की लंबी लिस्ट चिपका देते हैं, लेकिन नाकामयाबी का सामना होते ही उनके सारे “स्किल्स” धरी के धरी रह जाते हैं।
क्योंकि किताबों में ये अध्याय लिखा ही नहीं “धोखा मिलने पर मुस्कुराना कैसे है, गिरे हुए से दोबारा उठना कैसे है, अपनों के तानों को हँसकर पी जाना कैसे है।”
कड़वा सच यही है माँ-बाप मार्गदर्शन कर सकते हैं, गुरु शिक्षा दे सकते हैं, लेकिन ज़िंदगी की लातें ही वो चीज़ सिखाती हैं जो कोई क्लासरूम नहीं सिखा सकता। और मज़ा ये है कि जब ये लातें खाओगे तो लोग ताली बजाएँगे, तंज कसेंगे “अरे, ये तो गिर गया”
पर वही गिरना आपको खड़ा होना भी सिखाता है। बस आपको समझना होता है। याद रहे सोना भी पिट-पिट कर ही निखरता है,तभी खरा सोना बनता है।
असल में, नाकामयाबी ईश्वर की बनाई वो गुप्त वर्कशॉप है जहाँ इंसान को पिघलाकर नया बनाया जाता है। लेकिन अफ़सोस, समाज में इसे “शर्मिंदगी” कहा जाता है। लोग भूल जाते हैं कि हर महान इंसान पहले असफलता के कीचड़ में लोटा है, तभी चमका है।
तो जनाब, अगली बार जब नाकामयाबी मिले तो घबराना मत। सोचो कि ज़िंदगी ने तुम्हें अपने “स्पेशल बैच” में एडमिशन दे दिया है। और ये कोर्स ऐसा है कि फीस आँसुओं में भरनी पड़ती है, क्लासरूम अकेलापन होता है, और डिग्री सिर्फ़ अनुभव की मुहर है।
बाकी दुनिया चाहे कुछ भी कहे, याद रखो गिरना तो सबको पड़ता है, लेकिन उठना सिर्फ़ वही सीखता है जो नाकामयाबी की क्लासरूम में टिककर बैठता है।
यही जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा होती है,जिसमे गुरु भी आप ही हो और शिक्षक भी ?

सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 💐

