
राजेन्द्र सिंह जादौन-
भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत में आदिवासी समाज का विशेष स्थान है। वही
मध्यप्रदेश का कोरकू जनजाति समाज अपनी अलग पहचान और विशिष्ट खानपान परंपरा के लिए जाना जाता है। खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बैतूल, होशंगाबाद और हरदा जिलों में बसे कोरकू लोग अपने भोजन को केवल भूख मिटाने का साधन नहीं मानते,
बल्कि उसे संस्कृति, स्वास्थ्य और सामुदायिक जीवन का हिस्सा मानते हैं।
मुख्य खाद्य आधार
कोरकू समाज का भोजन उनकी कृषि और जंगल पर निर्भरता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
मकई (मक्का) यह उनका प्रधान अनाज है। मक्के की भाकरी लगभग हर घर का दैनिक भोजन है। कोदो और कुटकी (लघु अनाज/मिलेट्स) पोषक तत्वों से भरपूर ये अनाज खिचड़ी, दलिया और रोटियों के रूप में खाए जाते हैं। ज्वार और बाजरा विशेषकर सर्दियों में उपयोग होने वाले प्रमुख अनाज।
पारंपरिक व्यंजन
भाकरी और चटनी मक्के या ज्वार की मोटी रोटी (भाकरी) के साथ हरी मिर्च, मूंगफली और लहसुन की चटनी। यह रोज़मर्रा का सबसे लोकप्रिय भोजन है।
महुआ के व्यंजन महुआ के फूल सुखाकर उनसे लड्डू, भात और पेय बनाए जाते हैं। महुआ को केवल भोजन ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सामाजिक परंपराओं से भी जोड़ा जाता है।

कंद-मूल जंगलों से प्राप्त अरबी, कसावा, शकरकंद और अन्य कंद-मूल उबालकर या भूनकर खाए जाते हैं।
साग-भाजी कोरकू लोग जंगल से मिलने वाले साग जैसे कोचई, बथुआ, गोंदली और करोंदा पत्तियाँ पकाकर खाते हैं। ये साग न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि पोषण से भी भरपूर हैं।
मछली और मांसाहार नदियों और नालों से मिलने वाली मछलियाँ तथा शिकार से प्राप्त मांस को बाँस की नलियों या मिट्टी के बर्तनों में पकाना कोरकू भोजन की विशेषता है।
लापसी (खिचड़ी) कोदो-कुटकी या बाजरे से बनी खिचड़ी, जिसे स्थानीय जड़ी-बूटियों के साथ पकाकर खाया जाता है।
पेय परंपरा
महुआ से बनी शराब त्यौहार, विवाह और सामाजिक अवसरों पर इसका विशेष महत्व है .चावल की हांड़ी चावल को किण्वित कर तैयार की जाने वाली पारंपरिक पेय।
पर्व और विशेष भोजन
कोरकू आदिवासी समाज में पर्व-त्योहार भोजन से गहराई से जुड़े हैं। फसल कटाई पर नई फसल से बनी कोदो की खिचड़ी और महुआ मिश्रित पकवान। त्यौहारों पर सामुदायिक भोज में मांस, मछली और महुआ के व्यंजन परोसे जाते हैं।
स्वास्थ्य और पोषण का आधार
कोरकू समाज का भोजन आज की “मिलेट-आधारित डाइट” से मेल खाता है। मोटे अनाज (कोदो, कुटकी, बाजरा) में उच्च फाइबर और पोषक तत्व होते हैं, जो कुपोषण से लड़ने के लिए बेहद उपयोगी हैं। स्थानीय साग और कंद-मूल विटामिन और खनिजों का समृद्ध स्रोत हैं।

कोरकू आदिवासियों की खाद्य संस्कृति केवल पेट भरने की परंपरा नहीं है,बल्कि यह उनकी जीवनशैली, प्रकृति से जुड़ाव औरसामुदायिक एकता का प्रतीक है। आज जब शहरी जीवनशैली हमें फास्ट फूड की ओर खींच रही है, कोरकू समाज का भोजन हमें यह याद दिलाता है कि सादगी, प्राकृतिकता और स्थानीयता ही सबसे बड़ा स्वास्थ्य है।

