महिला सशक्तिकरण में एक ऐसा उदाहरण जो कभी लोगों तक शायद ही पहुँच पाता ?

 

महिला दिवस स्पेशल

महिला सशक्तिकरण में एक ऐसा उदाहरण जो कभी लोगों तक शायद ही पहुँच पाता ?

प्रेरणा गौतम

महिला सशक्तीकरण की अगर बात करे और उसे समझे तो बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएं शक्तिशाली बनती है जिससे वह अपने जीवन से जुड़े सभी फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तीकरण है। इसमें ऐसी ताकत है कि वह समाज और देश में बहुत कुछ बदल सके। भारत की आधी आबादी महिलाओं की है और विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर महिला श्रम में योगदान दे तो भारत की विकास दर दहाई की संख्या में होगी। फिर भी यह दुर्भाग्य की बात है कि सिर्फ कुछ लोग महिला रोजगार के बारे में बात करते हैं जबकि अधिकतर लोगों को युवाओं के बेरोजगार होने की ज्यादा चिंता है। लेकिन अगर महिला कुछ चाहें तो क्या कुछ नही कर सकती ? फिर चाहे बात सावित्री की हो जिस सावित्री ने अपनी चतुराई से यमराज को मनाकर अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे और साथ में सावित्री ने यमराज से तीन वरदान भी मांग लिए थे सास-ससुर की आंखें, खोया हुआ राज-पाठ, 100 पुत्रों का वरदान मांग लिया था या बात हो एक सीधी साधी आम ग्रहणी की,स्त्री अपने आप में सम्पूर्ण है।
अमूमन ऐसा होता है कि महिला सशक्तिकरण का ज़िक्र छिड़ते ही हमारे ज़ेहन में उन सफल महिलाओं की तस्वीरें उभरने लगती हैं, जो या तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ हैं या कोई बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता या फिर कोई सेलिब्रेटी लेकिन आज हम एक ऐसी महिला का ज़िक्र करने जा रहे हैं, जिसने महिला सशक्तिकरण की नई परिभाषा गढ़ी और पुरुष प्रधान समाज की तमाम बंदिशों को चुनौती देते हुए अपनी राह ख़ुद बनाई।

भोपाल में रहने वाली 38 साल की ऋचा यादव जिन्होंने बताया ऐसा क्या है जो महिला नही कर सकती है? अगर महिला खुद को इतना मजबूत करले के समाज और परिवार के बीच बैलेंस कर सके जिस दिन महिलाएं यह समझ जाएगी वह ख़ुद को और अपने परिवार को पाल सकती है, और उसकी आधी परेशानी ख़त्म हो जाएगी?
ऋचा बचपन से ऐसे समाज के बीच पली बड़ी है जहां महिलाओं को सिर्फ घर की शोभा का दर्जा ही दिया जाता रहा है,लेकिन उनके विचार सबसे अलग रहे,उनको बचपन से ही कुछ करने अलग करने और समाज में अपनी अलग पहचान बनाने का ज़ज़्बा रहा,आपको बता दे ऋचा शादीशुदा है और उनके दो प्यारे बच्चे भी है एक बड़ी बेटी और छोटा बेटा है। ऋचा ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया अपने आप से कई बार युद्ध किया और कई बार अपनो से भी किया ,उनकी राहें इतनी आसान कभी नही थी क्योंकि जब उन्होंने अपने लिए फैसले लेने का सोचा तो परिवार के तमाम सदस्य उनके पक्ष में कभी नही थे, बहुत संघर्ष किया और फिर आखिरकार सब को साबित किया महिला चाहे तो क्या कुछ नही कर सकती अगर अपने आप पे भरोसा हो तो गृहस्ती होते हुए भी सब कर सकती है क्योंकि वो नारी है, इसलिए नारी को शक्ति का स्वरूप कहा गया है। ऋचा ने शादी के बाद भी अपने माता पिता के साथ साथ अपने ससुराल पक्ष का मान सम्मान समाज में बनाया हुआ है,वो अपने परिवार के साथ साथ एक पार्लर चलती है और तो और अपने घर में ढ़ेरों बेजुबानों को भी पनाह देती है,जिन्हें लोगो ने धुत्कार दिया उन्हें ऋचा ने लगे से लगा कर रखा है । ऋचा ने अपने तबके पर 10 से 12 स्ट्रीट डॉग्स को अपने घर मे जगह दी हुई है स्ट्रीट्स डॉग्स वो जो एक्सीडेंटल होता है या विकलांग होते है उन्हें ऋचा पूरे मन और निष्ठा से उनका लालन पालन करती है वो भी अपने अकेले के दाम पर,जब हम ने ऋचा से जाना तो वो बोलती है ईश्वर ने हमे मनुष्य इसलिए बनाया है ताकि हम जितना हो सके ऐसे उन जीवो को आशय दे जिनको जरूरत है कोई उनकी भी सुध ले,जिनका कोई नही यही सही मायने में ईश्वर भक्ति है । ऋचा का ईश्वर में पूर्ण विश्वास है और वो बोलती है मैं कुछ नही कर रही ये जो भी उनके द्वारा हो रहा है सब ईश्वर की कृपा और उन्हीं का आदेश है। ऋचा अपने आप को सौभाग्यशाली मानती है कि आज के कलयुग में जहां किसी को किसी से कोई सरोकार नही ईश्वर ने उन्हें इस लायक बनाया की वो परिवार से लेकर इन बेजुबानों के लिए कुछ कर सकी,और आगे भी लगातार ऐसे ही सेवा भाव रखते हुए जितना हो सकेगा वो करती रहेंगी ।
सेवा भाव है कर्म नहीं, इसलिए हर परिस्थिति में योग्यता, रुचि, और सामर्थ्य के हिसाब से सेवा की जा सकती है। ऐसी नारी शक्ति को मेरा नमन है।
“सेवा निस्वार्थ भाव से की जाती है, वही पुण्यकार्य कहलाता है, निस्वार्थ सेवा ही सच्ची और सार्थक सेवा है”

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