नदियां जीवन का आधार है, लेकिन तेजी से बढ़ते प्रदूषण के कारण कई नदियां अब “मृत” होने की कगार पर है. गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां भी दुनिया की प्रदूषित नदियों में शामिल हो चुकी है.
नदियां हमारे अस्तित्व और पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ हैं, लेकिन दिनों-दिन बढ़ते प्रदूषण के कारण वे अपने वास्तविक स्वरूप से दूर होती जा रही है. पहाड़ों से निकलते समय नदियां निर्मल और स्वच्छ होती हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे शहरों से गुजरती है, उनमें गंदगी और प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ जाता है. इसका खामिजाया जीव, वनस्पति उठाते हैं.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण गंगा नदी है—देवप्रयाग में इसका एमपीएन (मॉस्ट प्रॉबेबल नंबर) मात्र 33 प्रति 100 एमएल होता है, लेकिन दक्षिणेश्वर तक पहुंचते-पहुंचते यह एक लाख से भी ऊपर चला जाता है. क्या यह केवल औद्योगीकरण और शहरीकरण का नतीजा है, या हमारी जीवनशैली भी इसके लिए उतनी ही जिम्मेदार है.
लंदन की मरी हुई बदबूदार नदी कैसे हुई साफ?
नदियों को लेकर भारत के सामने जो चुनौती है उनसे कई देश पहले ही गुजर चुके है. थेम्स नदी, जो लंदन की जीवन रेखा मानी जाती है, कभी दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक हुआ करती थी. 1957 में, नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम ने इसे “बायोलॉजिकली डेड” घोषित कर दिया था, क्योंकि इसमें ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियां जीवित नहीं रह पाती थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए बम धमाकों से शहर की सीवेज प्रणाली नष्ट हो गई थी, जिससे नदी में गंदगी और जहरीले कचरे का अंबार लग गया.
19वीं सदी में खराब जल निकासी और गंदे पानी के कारण लंदन में कई बार हैजा फैला. 1854 में डॉ. जॉन स्नो ने यह साबित किया कि यह बीमारी दूषित पानी के कारण फैल रही थी. 1858 में “द ग्रेट स्टिंक” नाम का संकट आया, जब नदी की बदबू असहनीय हो गई और संसद को मजबूरन नया सीवेज सिस्टम बनाना पड़ा. 1870 में जोसेफ बाजल्गेट ने आधुनिक सीवेज प्रणाली तैयार की, जिससे नदी की स्थिति में सुधार किया जा सके.
भारत में कितनी बुरी है नदियों की हालत?
भारत में भी ऐसी कई नदियां है जो बायोलॉजिकली डेड होने की कगार पर है. जिनको अब नदियों के नाम से नहीं बल्कि नालों के नाम से जाना जाता है. उनके नदी होने के अस्तित्व का भी कुछ पता नहीं है. दिल्ली की साहिबी नदी इसका एक उदाहरण माना जा सकता है. अब यह नदी नाला बन चुकी है. इसको नजफगढ़ के नाले के नाम से जाना जाता है. दिल्ली का सीवेज यमुना तक पहुंचाने में इसका सबसे बड़ा योगदान रहता है. हालांकि विद्वानों का मानना है कि यह नदी वैदिक काल से मौजूद रही है.
गंगा और यमुना भी दुनिया की सबसे दूषित नदियों में गिनी जाती है. गंगा नदी के बिगड़ते हालात के पीछे पांच मुख्य कारण हैं—औद्योगीकरण, शहरीकरण, जीवनशैली में बदलाव, कृषि एवं ग्रामीण गतिविधियां और वनों की कटाई. गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है, जो देश के 27% भूभाग में फैली हुई है और 47% जनसंख्या को सहारा देती है. यह नदी 11 राज्यों से होकर गुजरती है, जिसमें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सबसे बड़े क्षेत्र लगभग 3 लाख वर्ग किमी में फैले है.
गंगा के पानी में बैक्टीरिया की मात्रा तेजी से बढ़ी है. दक्षिणेश्वर में यह 1986-1990 के बीच औसतन प्रति 100 मिलीलीटर एमपीएन 71,900 थी, जो 2006-2010 में बढ़कर 1,05,000 हो गई. प्रयागराज में यह 1986-1990 में 4,310 थी, जो 2006-2010 में 16,600 हो गई. 19 जनवरी 2025 में कुंभ के दौरान हुई जांच में यह संख्या 7 लाख तक पहुंच गई थी. हैजा, हेपेटाइटिस, टाइफाइड जैसे दूषित पानी की वजह से होने वाले रोगों को 80% स्वास्थ्य समस्याओं और एक-तिहाई मौतों के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
सीवेज ट्रीटमेंट और गंगा का बढ़ता प्रदूषण
गंगा और यमुना में बड़ी मात्रा में सीवेज बहता है. झारखंड के हिस्से में उत्पन्न 100% सीवेज बिना ट्रीटमेन्ट के गंगा में जाता है, लेकिन यह सबसे कम प्रदूषण फैलाने वाला राज्य है. सबसे अधिक सीवेज डिस्चार्ज करने वाले राज्यों में दिल्ली सबसे ऊपर है. दिल्ली से प्रति दिन लगभग 327 करोड़ लीटर सीवेज गंगा में जाता है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश से लगभग 120 करोड़ लीटर और पश्चिम बंगाल और बिहार से लगभग 70 करोड़ लीटर सीवेज प्रति दिन गंगा में जाता है.
हालांकि गंगा में प्रदूषण के दो मुख्य स्रोत हैं- औद्योगिक कचरा (15%) और नगरपालिका सीवेज (80%), जो कि सबसे ज्यादा है. इसके अलावा गांवों और कृषि क्षेत्रों से बहाव, खुले में शौच, शवों का विसर्जन, धार्मिक चढ़ावे भी प्रदूषण के कारण बनते है.
भारत सरकार ने गंगा नदी की सफाई के लिए नमामि गंगे मिशन जैसे कई महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए है. जिसका मुख्य उद्देश्य सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना, औद्योगिक कचरे के निपटारे को नियंत्रित करना और जंगल उगाने को बढ़ावा देना है. लेकिन इन योजनाओं में कई चुनौतियां आई हैं, जैसे परियोजनाओं में देरी और नियमों का प्रभावी रूप से लागू ना हो पाना.